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आपदा के समय ज़्यादातर लोग वो अहम काम करने में असफल रहते हैं जो उनकी जान बचा सकता है.

लेकिन ऐसा क्यों होता है ? इसका जवाब खोजते समय 27 सितंबर 1994 की उस घटना पर ध्यान देना चाहिए जिसमें 852 लोग समुद्र में डूब गए थे.

उस दिन सुबह सात बजे समुद्री जहाज़ एमएस एस्टोनिया 989 मुसाफ़िरों को लेकर तालिन बंदरगाह से रवाना हुआ. उसे बाल्टिक सागर पार कर स्टॉकहोम जाना था. पर जहाज़़ कभी वहाँ नहीं पंहुचा.

बंदरगाह छोड़ने के छह घंटे बाद जहाज़ ज़बरदस्त तूफ़ान में फंस गया, इसके सामने का दरवाज़ा टूट गया और पानी तेज़ी से अंदर घुसने लगा.

घंटे भर में जहाज़ डूब गया और इसके साथ ही डूब गए 852 यात्री और जहाज़ का चालक दल.

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क्यों डूबे 852 लोग?

त्रासदी घटने की गति, समुद्री तूफ़ान, जहाज़ डूबने के आधे घंटे बाद आपात स्थिति की घोषणा और बचाव दल का प्रभावित लोगों तक पंहुचने का समय...इन सभी बातों को देखते हुए भी राहत विशेषज्ञ इतने अधिक लोगों के मरने से दंग रह गए. ऐसा लगता है कि कई लोग सिर्फ़ इसलिए डूब गए कि उन्होंने बचने की कोई कोशिश ही नहीं की.

एक अधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया, “ऐसा लगता है कि भयभीत होने के कारण कई लोग सोचने-समझने या ज़रूरी कार्रवाई करने की क्षमता ही खो बैठे.